कहने को हम कहते हैं सब - जय किसान । दुर्दशा देख पीड़ित लेकिन - होरी सचान ।। @@@@@@@@@@@@@@ राजकुमार सचान होरी अध्यक्ष -- कृषक,ग्रामीण श्रमिक मंच / सम्पादक -- पटेल टाइम्स ईमेल -- horisardarpatel@gmail.com
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Monday, 29 February 2016
भारतीय किसान : किसान हितैषी
किसान हितैषी
किसानों का बजट
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किसान हितैषी बजट के लिये मोदी जी और उनकी सरकार को साधुवाद । हाँ, किसानों के लिये यह अभी नाकाफ़ी है । इस देश में एक भी किसान आत्महत्या न करे तब हम सफल हों ।
राजकुमार सचान होरी
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Sunday, 28 February 2016
होरी कहिन - किसान पर
०००००००००००००००
१--
बस बलिदान जवान का, बस किसान का त्याग ।
दोऊ दुखिया देश में, खेलें पल पल आग ।।
खेलें पल पल आग , खेत सीमा पर दोऊ ।
इनकी सुधि भी लें न , कभी भारत में कोऊ ।।
करें आत्महत्या किसान तो , मरें जवान वहाँ ।
राष्ट्र इन्हीं के बलबूते पर , इनका दुखी जहाँ ।।
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राजकुमार सचान होरी
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Indian Farmer भारतीय किसान: किसान - अन्नदाता-२
(भाग -२)
भूमि से अन्न पैदा करना और उसे दानदाता की भाँति दूसरों को दे देना ,वाह रे अन्नदाता !! वाह रे धरती के विधाता ? ...
किसान - अन्नदाता-२
(भाग -२)
भूमि से अन्न पैदा करना और उसे दानदाता की भाँति दूसरों को दे देना ,वाह रे अन्नदाता !! वाह रे धरती के विधाता ? शोषकों के शोषण से आकंठ त्रस्त पर भ्रम में मस्त कि वह " अन्नदाता " है । अन्नव्यवसाई या अन्न विक्रेता नाम हमने इसलिये नहीं दिये कि वह हानि लाभ की सोचे ही नहीं बस बना रहे अन्नदाता । लाभ हानि का गणित किसान को समझ में नहीं आना चाहिये ।जैसे ही समझ में आयेगा या तो वह खेती छोड़ देगा या खेती में ही मर खप जायेगा ।
अन्न व्यवसायी , अन्न विक्रेता , अन्न उत्पादक जैसे नामकरण शहरी धूर्तों , नेताओं और पाखण्डी लेखकों ,कवियों ने उसे दिये ही नहीं ।उसे तो अन्नदानी की श्रेणी में रख कर इन सबने सदियों से ठगा ही । तभी धूर्तो की प्रशंसा से ख़ुश होकर वह अधिक लागत लगा , अपना ख़ून पसीना लगा अपना अन्न , दाता के रूप में देता रहा । दान भाव से देता रहा अपना अन्न लहू से पैदा हुआ । वाह रे अन्नदानी !! किये रहो खेती , भूखों मरते रहो ,ग़रीबी में ही जियो ,मरो । जब सब्र टूट जाय कर लो आत्म हत्या किसी को क्या लेना देना , शहरी धूर्त यही कहेंगे कि पारिवारिक कलह से मरा ,बीमारी से मरा । सैनिक के मरने पर तो देश गमगीन भी होता है , सम्मान में क़सीदे भी पढ़ता है पर तेरे मरने पर जय किसान भी कोई नहीं कहता । कुछ समझे महामहिम अन्नदाता जी ??
कोई भी व्यवसायी घाटे में व्यवसाय अधिक समय तक नहीं कर सकता , किसान कर सकता है मरते दम तक । शहरी को खेती करते देखा है ? नहीं न ? है कोई माँ का लाल जो किसान की तरह काम करे ~ लागत अधिक लगाये , लगातार घाटा उठाये पर करे खेती ही । जीना यहाँ , मरना यहाँ की नियति में ।
सरकारें और शहरी धूर्त ,नेता ,व्यवसायी ,सब के सब लगे रहते हैं कि १-अनाज के दाम न बढ़ें और २- किसान खेती न छोड़े ,गाँव न छोड़े । नहीं तो भारी अनर्थ हो जायेगा । कहाँ मिल पायेंगे देश को ये 90 करोड़ बंधुआ किसान । चिन्ता उसके मरने से अधिक हमारे मरने की है , हम तो बंधुआ मज़दूर और बंधुआ किसान के पैरोकार जो ठहरे ।पढ़े लिखों के तर्क सुनिये किसान अनाज नहीं पैदा करेगा तो हम खायेंगे क्या ? देश क्या खायेगा ? जैसे पेट काट कर खिलाने का ठेका किसानों ने ले लिया है । स्वयं भूखों मर कर हम परजीवियों को ज़िन्दा रखने का पुण्य काम उसी के लिये है । हम तुम्हारी फ़सलो के दाम नहीं बढ़ायेंगे तुम मर जाओ ठीक पर देश नहीं मरना चाहिये । २०% को ज़िन्दा रखने के लिये ८० % की क़ुर्बानी ।
( क्रमश: )
राजकुमार सचान होरी
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किसान -अन्नदाता-१
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किसान की होती है भूमि , जिस पर वह खेती करता है और ठीक वैसे ही भूमि का होत है किसान जो भूमि के लिये होता है ,भूमि के द्वारा होता है । उसका सम्पूर्ण अस्तित्व भूमि के लिये होता है । भूमि और किसान अन्योन्याश्रित हैं दोनो एक दूसरे पर निर्भर , एक दूसरे से ज़िन्दा ।किसान से भूमि छीन लो किसान मर जायेगा , भूमि से किसान छीन लो भूमि मर जायेगी -- एकदम बंजर ।किसान और भूमि का यह सदियों पुराना संबद्ध चलता आया है ।
इस मधुर संबंध में जब तब पलीता लगाया है किसी ने तो वे हैं भूमाफिया और भगवान । भूमाफ़ियाओं में सबसे ऊँचा बड़ा स्थान सरकारों का होता है , हाँ ग़ैरसरकारी भूमाफिया भी होते हैं जो संख्या में अधिक हैं और वे ही कभी सरकारों से मिल कर तो कभी अकेले दम पर ही भूमि को हथियाते हैं , कब्जियाते हैं । उधर भगवान के तो कहने ही क्या -कभी जल मग्न कर भूमि कब्जियाई तो कभी सुखा सुखा कर भूमि और किसान की दुर्गति करदी । कभी गोले की तरह ओले बरसा दिये तो कभी कोरें का बाण चला दिया । बस भगवान की मर्ज़ी ।कभी कभी तो एक साथ इतने सारे अस्त्र शस्त्र चला देता है भगवान कि किसान और भूमि दोनो को इतना घायल कर देता है कि किसान और भूमि दोनो गले लग लग कर मरते हैं ।
अन्नदाता -- एक अन्य नाम है ।किसान का कथित सम्मान बढ़ाने वाला नाम । जैसे प्राणदाता , दानदाता या जीवनदाता ।
क्रमश: ------
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Monday, 22 February 2016
वाह रे राष्ट्र !
Monday, 15 February 2016
किसान उन्नति कैसे करें ??
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आज जब किसानों की कुशलक्षेम पूछने वाला कोई नहीं है , घड़ियाली आँसू बहाने के सिवा । तब मैंने बदलता भारत संस्था की ओर से अभियान चलाया है उनको अपने पैरों खड़े करने का । सबसे पहले कड़े निर्णय लेने होंगे उन्हें ----
१-- अपनी ज़मीन का एक हिस्सा बेच कर पास के क़स्बे में आवास बनाना होगा वहीं से अपनी कृषि पैदावार की मार्केटिंग करनी होगी अच्छे दाम मिलेंगे ।
२-- नगरों में आने पर कोई और व्यवसाय मिलेगा ।
३-- क़स्बों मे रहने से परिवार का स्तर उठेगा ।
४-- खेती की नई तकनीकें सीख सकेंगे ।
५-- शहरों में बसने से सम्मान बढ़ेगा , किसान होने का अपमान मिटेगा ।
६-- शहरी अपने बराबर मानेंगे ।
आइये आप भी आगे आइये । बहुत किसान इस रास्ते चल चुके हैं और अपना भविष्य बना रहे हैं । आप भी अपना भविष्य सुरक्षित कीजिये ।
आत्म हत्या की नौबत क्यों आये ??
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राजकुमार सचान होरी
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Saturday, 13 February 2016
सागौन की फ़सल
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आज मैं एक हेक्टेयर खेत में टीक ( सागौन) की खेती करने पर अर्थ शास्त्र की बात करूँगा । जैसे आप बैंक में फिक्स्ड डिपाजिट की स्कीम समझते हैं वैसे ही मैं इसे समझाता हूँ ।
मात्र एक हेक्टेयर में टीक 2 मीटर की दूरी पर प्रारम्भ में लगाने हैं कुल 2500 पौधों की ज़रूरत पड़ेगी । आज कल वन विभाग या प्राइवेट कम्पनियाँ पौधे उपलब्ध कराती हैं । इनमें अच्छी प्रजाति के पौधे लगायें । खेत में जल भराव नहीं होना चाहिये । गहरे खेतों में टीक न लगायें ।
अप्रैल से लेकर सितम्बर तक पहले गड्ढे तैयार कर और उनमें गोबर की खाद तथा डीएपी डाल कर टीक लगायें । पहले तीन वर्षों तक गर्मियों में सिंचाई करने की आवश्यकता है । दीमक का ट्रीटमेंट भी आरम्भ में ही करें ।
एक हेक्टेयर में कुल 2500 पौधे की क़ीमत सरकारी में कम लगभग 20 रुपया प्रति पौधा और प्राइवेट में 50 रुपये । कुल क़ीमत क्रमश:50 हज़ार रुपये या 125000 रुपये ।
टीक की वृद्धि जलवायु मिट्टी पर भी निर्भर है , लेकिन 20 वर्षों से लेकर 40 वर्षों तक टीक अच्छी क़ीमत दे देते हैं । जो 2500 पौधे आरम्भ में लगाये थे उनकी छटाई के साथ साथ कमज़ोर पौधों को जड़ से हटाना ( thining) भी होता है इन पौधों की लकड़ी भी बिकती रहती है । टीक की लकड़ी किसी भी उम्र के पौधे की बिक जाती है । 3 और 4 वर्षों तक कम करने से शेष मज़बूत पौधे लगभग 1000 (एक हज़ार ) को पूर्ण बढ़ने दीजिये , जिन्हें आपको निर्धारित अवधि के बाद बेचने हैं ।
घनफीट यानी लकड़ी की मात्रा के अनुसार इनकी क़ीमत पर पेड़ रु 30,000 (तीस हज़ार ) से लेकर रु 80,000 हज़ार तक कम से कम हो जायेगी । एवरेज मान लें तो गणना कर सकते हैं 50,000 रुपये प्रति पेड़ । इस तरह कुल रुपये जो आपको मिलेंगे वह होंगे 50000000 रुपये यानी 5 करोड़ रुपये ।
यदि आप युवा अवस्था में लगाते हैं तो स्वयं अन्यथा आपके बच्चों को इतनी भारी भरकम राशि मिलेगी वह भी White money .
देर किस बात की आइये करोड़पति बन जाइये आप भी ।
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राज कुमार सचान होरी
राष्ट्रीय अध्यक्ष
बदलता भारत
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भारतीय किसान : Teak plantations
Friday, 12 February 2016
Badaltabharat
5 अस्पृश्ता निवारण और सामाजिक समरसता
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इस देश का ऐतिहासिक कटु सत्य है ़़़़जातियां और जातियाँ ।जातियों के अन्दर जातियाँ । जातियों के बाहर जातियाँ । इनमें कोयी ऊँचा तो कोयी नीचा । छुआछूत अभी तक जारी । विवाह ,भोजन में पृथक पृथक । यहाँ तक धर्म परिवर्तन के पश्चात भी जातियाँ विद्यमान हैं और उनमें छोटी बड़ी सभी ।
देश का बड़ा दुर्भाग्य है कि इन असंख्य जातियों के कारण अस्पृश्ता बनी हुयी है और सामाजिक समरसता अन्त्यन्त क्षीण है । कभी धर्म के कारण तो कभी जातियों के कारण समाज में एकता नहीं आ पाती , राष्ट्र वाद की भीषण कमी है ।
इस देश को जिसने भी जाना समझा उसने सबसे पहले अछूत (अस्पृश्य ) को गले लगाया ़़़़़गांधी को ही देख लीजिये हमेंशा अछूतोद्धार के लिये कार्य किया ।
आइए देश की इस घृणित कुरीति को हमेशा के लिये जड़ से उखाड़ फेंकने और जातियो के अन्तर को मिटाने के लिये हमारे साथ आयें । कंधा से कंधा मिलायें । इंडिया चेंजेज़ के साथ आयें । प्रत्येक शुबह की शुरुआत किसी अछूत समझे जाने वाले परिवार के घर प्रात:भोजन से करें, दोपहर एक मज़दूर के यहाँ भोजन और रात एक किसान के घर भोजन , यह हमारी पद्धति है समरसता की ।
अगर गाँव और शहर गंदे हों ,सफाई न हो तो वहाँ के रहने वाले कैसे स्वच्छ रहेंगे ? कैसे स्वस्थ रहेंगे ? पर आज भी स्थिति बनी हुई है कि सभी जगह भारी गंदगी है और सफाई करने वालों की भारी कमी । जनसंख्या के मानकों के अनुसार सफाई कर्मियों की शीघ्र भर्ती आवश्यक है वह भी केवल सफाईकर्मी परिवारों से, यह हमारी महत्वपूर्ण माँग है ।
हमारी माँग है, अंतर्जातीय विवाहों को बढ़ावा देना ।ऐसा करने वालों को सम्मानित करना ।
इंडिया चेंजे़ज़ ( INDIA CHANGES )
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Hori KAHIN
होरी कहिन
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१--
फूल और फल अब रहे,चहुँ दिशि में नक्काल ।
होरी अपने देश में , बड़े बड़े भोकाल ।।
बड़े बड़े भोकाल , नक़ल में अकल लगाते ।
दुनियाभर का माल ,नक़ल में असल बनाते ।।
कवि लेखक भी नक़ली,नक़ली नक़ली हैं स्कूल ।
सूँघ रहे हम जिन्हें चाव से , वे भी नक़ली फूल ।।
००००००००००००००००००००००००००००००००००
२--
पढ़ लिख कर डिग्री लिये , फिरते चारों ओर ।
पढ़े लिखों में बढ़ रही , बेकारी घनघोर ।।
बेकारी घनघोर , डिग्रियाँ भी कुछ जाली ।
असली नक़ली खोखली कुछ तो चप्पे वाली ।।
स्किल डेवलप एक रास्ता , तू आगे बढ़ ।
स्किल डेवलप कोर्सों को ही ,अब तू पढ़ ।।
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३--
सत्तर प्रतिशत गाँव में ,अब भी देश सचान ।
कुछ भूखे नंगे मिलें , कुछ के निकले प्रान ।।
कुछ के निकले प्रान , मगर वे हैं बेचारे ।
बस शहरों की राजनीति के , मारे सारे ।।
फ़सलों की लागत कम होती ,नहीं कभी भी।
अब गाँवों की दशा ,दुर्दशा हाय ग़रीबी ।।
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४--
सभी अन्नदाता दुखी , तिल तिल मरे किसान ।
देश बढ़ रहा शान से , कहते मगर सचान ।।
कहते मगर सचान , देश में ख़ुशहाली है ।
यह किसान को सुन सुन कर , लगती गाली है।।
होरी अब भी गोदानों की , वही कहानी है ।
धनिया , गोबर वही , गाँव का वह ही पानी है ।।
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राज कुमार सचान होरी
१७६ अभयखण्ड -१ इंदिरापुरम , गाजियाबाद
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Saturday, 6 February 2016
Annadaataa Ka sammaan??
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'अन्नदाता' कह ,किसान का ,हम सम्मान बढ़ाते हैं ।
जय किसान का नारा भी तो ,शास्त्री जी गढ़ जाते हैं ।।
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चलो एक किसान होरी संग ,एक कचेहरी साथ चलें ।
वही पुरानी धोती कुर्ता ,चप्पल अब भी साथ मिलें ।।
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उसके खेतों मे दबंग ने ,क़ब्ज़ा किया हुआ था ।
एसडीएम ,डीएम से कहने ,होरी वहाँ गया था।।
डोल रहा था इधर उधर , बाबू अर्दलियों तक ।
कोर्ट कचेहरी सड़कों तक,बंगलों से गलियों तक ।।
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छोटे से बडके नेता तक ,चप्पल घिस डाली थी ।
दान दक्षिणा देते देते ,जेब हुई ख़ाली थी ।।
दौड़ लगाता वह किसान ,अंदर से पूर्ण हिला था ।
पर उसकी ख़ुद की ज़मीन का,क़ब्ज़ा नहीं मिला था ।।
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होरी का परिवार दुखी ,पीड़ित जर्जर ,तो था ही था ।
रोटी सँग बोटी नुचने का ,ग़म ही ग़म तो था ही था ।।
गया जहाँ था मिला वहीं,अपमान किसान सरीखा ।
उसको तो हर सख्स, ग़ैर सा ,मुँह फैलाये दीखा ।।
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जय किसान कहने वाले सब ,उसकी हँसी उड़ाते ।
नहीं मान सम्मान ,अँगूठा मिल सब उसे दिखाते ।।
क़र्ज़ भुखमरी से पहले ही ,वह अधमरा हुआ था ।
लेकिन ज़्यादा अपमानों से ,अंतस् पूर्ण मरा था ।।
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एक दिवस वह गया खेत में , लौटा नहीं कभी भी ।
होरी की यह कथा गाँव में ,कहते सभी अभी भी ।।
होरी किसान की अंत कथा ,दूजा होरी बतलाये ।
फिर से आँधी तूफ़ानों सँग , काले बादल छाये ।।
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राज कुमार सचान होरी
१७६ अभयखण्ड -१ इंदिरापुरम , गाजियाबाद
9958788699